History of Gola Gokaran Nath

उत्तर प्रदेश जहां स्वयं परमेश्वर श्री भगवान नारायण प्रगट हुए,जो ऋषि मुनियों की तपोभूमि है जहां सकल तीर्थों के राजा प्रयागराज हैं।महर्षि दधीचि व अट्ठासी हजार ऋषियों की तपोस्थली व पृथ्वी का मध्य नैमिषारण्य है।जहां साक्षात महादेव की नगरी मोक्षदायिनी काशी विराजित है,इस पवित्र प्रदेश में नैमिषारण्य क्षेत्र के अंतर्गत छोटी काशी के रूप में विख्यात गोला गोकर्णनाथ नगर है जो प्रदेश के सबसे विशाल क्षेत्रफल वाले,दैवीय अलंकार व प्राकृतिक सम्पदा से सुसज्जित जिले खीरी में स्थित है।

गोला गोकर्णनाथ सरायन नदी के तट पर स्थित है।गोला गोकर्णनाथ की प्रसिद्धि यहां विराजित व गोला के अधिपति भगवान श्री गोकर्णनाथ महादेव से है।नगर के निवासी भगवान महादेव के इस स्वरूप को नित्य भजते हैं व स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस करते हैं।श्री गोकर्णनाथ का इतिहास अत्यंत प्राचीन है व अतिश्योक्ति नही है कि भगवान का यह स्वरूप अत्यंत मनमोहन व दिव्य है,यह शिवलिंग गाय के कान (गौ-कर्ण) की आकृति का है इस लिए इन्हें गोकर्णनाथ कहा जाता है।

राष्ट्रकवि अवधी सम्राट पं. वंशीधर शुक्ल जी ने “सावन का मेला” शीर्षक से गोला गोकर्णनाथ नगर में लगने वाले सावन मेला व श्री गोकर्णनाथ की महिमा लिखी है,उसकी कुछ पंक्ति निम्नलिखित हैं:


ई सब गंगाजलु लाये गोकरननाथ का जइहइँ,
अउ पुजिहइ संकर जो का,सबु दारिद धोय बहइहइँ।
गोकरन नाथ गोला के, हइँ सब दुनिया के ईसुर,
जो मनई उनका पूजइँ, उइ बढ़इ घान कस सिक्कुर।

पं. वंशीधर शुक्ल


ये सभी गंगाजल लेकर गोकरननाथ (गोला गोकर्णनाथ) जायेंगे और शंकर का पूजन कर अपने पापों को धो देंगे।गोला के गोकरननाथ (गोकर्णनाथ) जो समस्त संसार के ईश्वर हैं उनका जो मन से पूजन करेगा, उनका परिवार धान की पैदावार के समान बढ़ेगा यानी समृद्धि आयेगी।

(पंडित जी की जन्मभूमि मन्योरा,जिला खीरी में स्थित है व उनका गोला गोकर्णनाथ से विशेष लगाव था।)

भगवान शिव के इस स्वरूप की कथा राक्षसराज रावण से जुड़ती है व श्री भगवान नारायण से भी।सर्वप्रथम प्रचलित कथा है कि रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। रावण की तपस्या से खुश होकर भगवान ने उससे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने कहा कि वह उन्हें अपने साथ लंका ले जाना चाहता है। यह सुनकर सभी देवता परेशान हो गए और ब्रह्माजी के पास गए और कहा कि अगर शिव रावण के साथ लंका चले गए तो सृष्टि का कार्य कैसे होगा?इसके बाद ब्रह्माजी ने भगवान शिव को सोच समझकर वरदान देने के लिए कहा। इस पर शिवजी ने रावण से कहा कि यदि तुम मुझे लंका ले जाना चाहते हो तो ले चलो लेकिन मेरी एक शर्त रहेगी। भगवान शिव ने रावण से कहा कि जहां भी मुझे भूमि स्पर्श हो जाएगी, मैं वही स्थापित हो जाउंगा। इस बात पर रावण सहमत हो गया। भगवान ने एक शिवलिंग का रूप धारण कर लिया। इसके बाद रावण शिवलिंग को लेकर जा रहा था। इसी दौरान भगवान शिव ने रावण को लघुशंका की इच्छा जगा दी। काफी समय तक बर्दाश्त करने के बाद रावण ने एक चरवाहे को शिवलिंग पकड़ाकर लघुशंका चला गया। इसी समय भगवान ने अपना वजन बढ़ा दिया और इससे चरवाहे ने रावण को आवाज लगाकर कहा कि वह अब इस शिवलिंग को उठाए नहीं रह सकता है। रावण लघुशंका करने में व्यस्त होने के कारण सुन नहीं पाया। इधर चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। जब रावण वापस आया और वह चरवाहे का मारने के लिए दौड़ा तो चरवाहे कुएं में गिर गया। इसके बाद रावण ने शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह असफल रहा। इससे क्रोधित होकर रावण ने अंगुठे से शिवलिंग को जोर से दबा दिया, आज भी शिवलिंग पर रावण के अंगुठे का निशान है। रावण निराश होकर वापस लंका चला गया।

इसके बाद भगवान शिव ने चरवाहे की आत्मा को बुलाकर कहा कि आज के बाद लोग तुम्हें भूतनाथ के नाम से जानेंगे और मेरे दर्शन के बाद तुम्हारे दर्शन करने पर भक्तों को विशेष पुण्यलाभ मिलेगा। इसके बाद से श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने के लिए गोला के गोकर्णनाथ आते हैं। सावन के महीने में भगवान शिव दर्शनों को आने वाले लाखों भक्त शिवलिंग के दर्शनों के बाद बाबा भूतनाथ के भी दर्शन अवश्य करते हैं।श्री भूतनाथ के दर्शन के बिना भगवान गोकर्णनाथ के दर्शन अधूरे माने जाते हैं व नागपंचमी के बाद पड़ने वाले सोमवार को यहां विशाल मेला लगता है जो ‘भूतनाथ मेला’ के नाम से विख्यात है।


दूसरी कथा जो भगवान श्री विष्णु से संबंधित है:प्राचीन काल में शिव मृत्युलोक में भ्रमण करते हुए इस वन क्षेत्र में आए और क्षेत्र की रमणीयता पर मुग्ध होकर यहीं ठहर गए।ब्रह्मा, विष्णु और देवराज इंद्र जब उन्हें ढूंढते हुए इस वन प्रांत में पहुंचे तो तीन सींग वाले विशाल अद्भुत मृग रूप धारी शिव को पहचान लिया और दौड़कर उनके श्रंग(सींग)पकड़ लिए। शिवजी अपने मूल स्वरूप में आ गए लेकिन तीन सींग देवताओं के हाथ में रह गए। उनमें से एक सींग भगवान विष्णु ने यहां स्थापित किया जो गोकर्णनाथ नाम से जाना जाता है।दूसरा श्रंग ब्रह्माजी ने बिहार प्रांत के श्रंगवेश्वर में स्थापित किया। तीसरा देवराज इंद्र ने अपनी अमरावती में स्थापित कर पूजन अर्चन शुरू किया।प्रमुख रूप से ऐसी ही कथा कर्नाटक के गोकर्ण में स्थित श्री गोकर्ण महाबलेश्वर की भी है।

श्री गोकर्णनाथ के मंदिर को ध्वस्त करने के लिए एक बार दुर्दांत आक्रांता औरंगजेब ने अपनी सेना को भेजा था। जब वे श्री गोकर्णनाथ नाथ के पास स्थित श्री वृद्धेश्वर नाथ (बूढ़े बाबा) शिवलिंग को ध्वस्त करने हेतु उन पर आरा चलाया तो फल स्वरूप यहां प्रांगण में स्थित कैमी वृक्ष से अचानक भौंरों ने भारी संख्या में सेना पर धावा बोल दिया और सेना को उल्टे पैर वापस भागना पड़ा।आज भी बूढ़े बाबा शिवलिंग में आरे के निशान स्पष्ट दिखते हैं।

मंदिर में आज भी अत्यंत प्राचीन मूर्तियों हैं जो इस बात का प्रमाण है कि किसी समय यहां पर अत्यंत भव्य मंदिर रहा होगा।मंदिर में श्री शिव परिवार,श्री शिव पार्वती,श्री नव दुर्गा,श्री गणेश,शेष शैय्या पर विराजित श्री विष्णु आदि प्राचीन मूर्तियां स्थित हैं।श्री भगवान का यह स्वरूप अत्यंत दुर्लभ व मनमोहक है,श्रावण मास के वक्त देश के कोने कोने से श्रद्धालुओं कावड़ लेकर भगवान के दर्शन को आते हैं उस वक्त गोला नगर का स्वरूप देखते ही बनता है।यहां स्थित महादेव का यह स्वरूप अत्यंत प्राचीन काल से पूजित है।गोला गोकर्णनाथ के प्रमुख शिव मंदिर के अलावा प्राचीन मंदिरों में श्री मंगला देवी मंदिर (खुटार रोड),श्री भूतनाथ मंदिर (लखीमपुर रोड) व श्री त्रिलोकगिरि मंदिर (सिनेमा रोड) है।

श्री गोकर्णनाथ प्राचीन से भी प्राचीन समय से यहां विराजमान हैं व अपने भक्तों का कल्याण करते रहे हैं।श्री गोकर्णनाथ का दिव्य दर्शन महाशिवरात्रि व श्रावण मास के वक्त होता है।वैसे तो प्रत्येक दिन भगवान का श्रृंगार किया जाता जो नयनाभिराम होता है।श्री भगवान के इस स्वरूप के दर्शन कल्याणप्रद है व समस्त मनोरथ पूर्ण करने वाले हैं।जो अनाथों के नाथ श्री गोकर्णनाथ समस्त लोक का कल्याण करें ऐसी मेरी प्रार्थना है।

जहां शंभू गोकर्णनाथ हैं, उस धरती का वंदन है,
जिसकी मिट्टी चंदन जैसी, गोला वह शिवधाम है,
ऐसी पुण्य धरा गोला को बारम्बार प्रणाम है।।

(English)

idols in the temple, which is a proof that once upon a time there must have been a very grand temple here. In the temple, there are statues of Shri Shiva Parivar, Shri Shiva Parvati, Shri Nav Durga, Shri Ganesh, Shri Vishnu seated on the remaining bed, etc.