Gajmochan Nath Temple

लखीमपुर खीरी जिले में कई धार्मिक और पौराणिक स्थलों में गजमोचन नाथ मंदिर भी अपना विशेष स्थान रखता है। जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर, मोहम्मदी मार्ग पर रोशननगर में गजमोचन नाथ मंदिर है।

यह स्थल महाभारत काल से जुड़ा है। जब यहां केवल वन क्षेत्र था। इस वन को कजरी वन के नाम से पुकारते थे। वजह थी वन इतना घना था कि यहां दिन में भी अंधेरा रहता था। इस स्थल का उल्लेख श्रीमद्भागवत कथा और सुख सागर में भी मिलता है। वन क्षेत्र में इस स्थल पर कदंब के वृक्षों की बहुलता थी। हालांकि अब यहां केवल चार कदंब के वृक्ष ही रह गए हैं।तीर्थ स्थल का महत्व यहां बहने वाली जंगली नदी से था। अब यह नदी तालाब के रूप में रह गई है। पौराणिक कथा इसी नदी पर आधारित है।नदी में रह रहे एक मगरमच्छ से हाथी का लंबा बैर चला। एक दिन मगर ने हाथी (गज) का पैर पकड़ लिया और पानी में खींचने लगा। हाथी त्राहि-त्राहि कर उठा। जौ भर सूंड पानी के ऊपर रह गई तो हाथी की पुकार पर भगवान विष्णु अवतरित हुए और सुदर्शन चक्र से मगर की गर्दन काटकर हाथी को बचाया। मंदिर में इस दृश्य को दर्शाती मूर्तियां लगी हैं। वहीं प्राचीन शिवालय है। आदिकाल की सरस्वती जी और गणेश जी की मूर्तियां भी यहां लगी हैं।

प्राचीन काल में अगस्त मुनि अपने 10,000 शिष्यों के साथ इधर से गुजरे। हा-हा नामक राजा यहां नदी पर स्नान कर रहा था। राजा ने मुनि को प्रणाम नहीं किया। मुनि अगस्त ने हाथी बन जाने का श्राप दे डाला। इधर, मगर पूर्व जन्म में हू-हू नाम का गन्धर्व था। देवल ऋषि नदी में स्नान के बाद सूर्य का अर्ध्य दे रहे थे तो यह जल क्रीड़ा के समय नदी में उनके पैरों के नीचे निकल गया। क्रोधित होकर उन्होंने इसे मगर हो जाने का श्राप दे दिया। हा-हा और हू-हू इसी कजरी वन में एक पानी में और दूसरा वन में झुंड के साथ रहता था। हाथी जब भी नदी पर जाता मगर से झगड़ा हो जाता था। यह विवाद कई वर्षों तक चला। हाथी की पुकार पर आए भगवान विष्णु ने दोनों का उद्धार किया।

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